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जंगल वाले बाबा के लिए ये संसार ही जंगल था

उनके लिए ये संसार ही जंगल था -  रूचि अनेकांत जैन ,नई दिल्ली ruchijaintmu@gmail.com दिनांक 18 अक्टूबर 2019 को दिगंबर श्रमण संस्कृति का एक और नक्षत्र अस्त हो गया । मुनि चिन्मय सागर जी समाधिस्थ हो गए । इस कलिकाल में भी त्याग और संयम की उत्कृष्ट साधना के फल स्वरूप अंतिम समय में शांत परिणामों से देह का विसर्जन हो जाना ,किसी आश्चर्य से कम नहीं लगता । मेरे लिए मुनि चिन्मय सागर जी दूरदर्शन का ही विषय रहे । कभी साक्षात् दर्शनों  का सौभाग्य न मिल सका । किन्तु जैसा देखा ,जाना और सुना , वह साक्षात् से कम भी नहीं है । लोग उन्हें जंगल वाले बाबा के नाम से पुकारते थे । पता नहीं उन्हें यह संबोधन पसंद था कि नहीं , लेकिन भक्तों ने जैसा देखा सुना और अनुभव किया उसके अनुसार भक्ति भाव से संबोधन भी बना लिया । कोई चाहे कुछ भी कहे पर बीहड़ जंगलों में साधना और तपस्या के दिन आज नहीं रहे । देखा जाए तो अब जंगल भी कहां बचे हैं ? पहले एक शहर से दूसरे शहर जाओ तो बीच में जंगल दिखते थे । अब ५०० किलोमीटर भी चले जाओ तो ऐसा लगता है जैसे एक शहर खत्म भी नहीं हुआ और दूसरा शुरू हो गया । अब न जंगल हैं और न जंगल वाले बाबा

जैन योग का नया अभ्युदय - अर्हम् योग

युवतियां कैसे करें पर्युषण पर्व की तैयारी ?

युवतियां कैसे करें पर्युषण पर्व की तैयारी  ? रूचि अनेकांत जैन , योग शोध अध्येता , नई दिल्ली जैन परंपरा में पर्युषण पर्व आत्म विशुद्धि योग के सबसे बड़े साधन हैं | पहले और आज की पर्युषण पर्व की आराधना , साधन और साधना में बहुत अंतर आ गया है | पहले संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्गों के सान्निध्य में पर्युषण के दिन कब आते थे और धर्माराधना करते हुए कब दिन निकल जाते थे पता ही नहीं चलता था | परन्तु आज इस कंप्यूटर  युग में जहां   W hatsapp,  google, youtube, twitter   आदि ने सभी को इतना उलझा रखा है कि बड़े शहरों में  एकल परिवारों   ( nuclear families)  में युवतियां पर्युषण के दिनों में धर्म लाभ तो लेना चाहती हैं , परन्तु छोटी-बड़ी समस्याएं उनके सामने अक्सर उपस्थित रहतीं हैं जिनके कारन कभी कभी जैन युवती चाहकर भी धर्म साधना नहीं कर पाती है | इन्हीं सब परिस्थितियों में सामंजस्य बिठाते हुए किस प्रकार पर्युषण के दिनों में धर्माराधना की जा सकती है , आइये कुछ प्रमुख बिन्दुओं  पर विचार करते हैं – Ø अपने घर के समीप के उस धार्मिक स्थल या जिन मंदिर का चुनाव करें , जिनमें आप आसानी से  अपने बच्चों के

कैसे करें और मांगें क्षमा ?

सादर प्रकाशनार्थ कैसे करें और मांगें क्षमा ? रूचि अनेकांत जैन जिन फाउंडेशन , ruchijaintmu@gmail.com क्षमा आत्मा का सर्वश्रेष्ठ गुणधर्म है,जो क्रोध के अभाव स्वरुप प्रकट होता है | पर्युषण पर्व में इसका महत्व अधिक बढ़ जाता है | परन्तु वास्तव में क्या हमारे भीतर क्रोध कम होता है या सिर्फ पर्युषण पर्व में हमारा क्रोध मन के किसी कोने में शांत बैठा रहता है ? वास्तविकता तो यही है कि हमारी कषाय पर्व के दिनों में भले ही शांत दिखती हो किन्तु अन्य दिनों में वह कषाय पुनः वैसी ही हो जाती है | प्रतिवर्ष आने वाले यह पर्व हमें संदेश देते हैं, हमें सिखलाते हैं कि हमें सदैव ही क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और क्षमा का भाव विकसित करना चाहिए |                   क्षमा अर्थात् forgiveness को हम सभी यदि अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें तो कोई किसी का शत्रु नहीं रहेगा, सारे झगड़े समाप्त हो जायेंगें,जिन्दगी जीना सभी के लिए आसान हो जाएगा | नई पीढ़ी विदेशों से आयातित पर्व तो बहुत जोर शोर से मनाने लगी है लेकिन हमारे भारतीय पर्वों को वो सम्मान नहीं देती है जो देना चाहिए | उसके कारणों में हम जाएँ तो हम